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मात्र ₹80 के निवेश से 7 महिलाओं ने शुरू किया करोड़ों की अंतर्राष्ट्रीय कंपनी, सही मायनों में वुमन एंपावरमेंट

 

डेस्क: आज वुमन एंपावरमेंट की बात तो सभी करते हैं लेकिन सही मायनों में वुमन एंपावरमेंट आज से दशकों पहले हुआ था। जिसने अब तक हजारों महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने की ताकत दी है। देश की आजादी के एक दशक बाद गुजरात के सात महिलाओं ने अपने परिवार की जिम्मेदारियों को उठाने के लिए कुछ काम करने का सोचा। इन महिलाओं को इस बात की खबर नहीं थी कि भविष्य में वह एक मिसाल कायम करने वाली हैं।

सात गुजराती महिलाओं को अपने परिवार को संभालने के लिए रुपयों की आवश्यकता थी। इसके लिए वह कोई काम ढूंढ रहे थे। लेकिन उन्हें इस तरह का काम चाहिए था जो दोपहर 12:00 बजे के बाद शुरू हो। क्योंकि गृहणी होने के कारण उन्हें घर का काम भी संभालना पड़ता था। ऐसा कोई भी काम ना मिलने पर अंत में सातों महिलाओं ने गुजराती थाली की शान पापड़ बनाने का निश्चय किया। लेकिन इसके लिए उनके पास पर्याप्त पूंजी की कमी थी।

₹80 उधार लेकर शुरू किया काम

पापड़ बनाने के लिए उन्हें पूंजी की आवश्यकता थी। इसके लिए सातो गुजराती महिलाओं ने एक समाजसेवी छगनलाल करमसी पारेख से ₹80 उधार लेकर इस काम की शुरुआत की। पूंजी की दिक्कत दूर हो जाने के बाद सातों महिलाएं 15 मार्च 1959 के दिन एक घर के छत पर इकट्ठा हुई और पापड़ के 4 पैकेट का निर्माण किया। पहले दिन से ही उनका यह कारोबार अच्छा मुनाफा कमाने लगा।

छगनलाल बने मार्गदर्शक

इन सातों महिलाओं के लगन को देखते हुए समाजसेवी छगनलाल इनके मार्गदर्शक बन गए। उन्होंने इन महिलाओं को अच्छे क्वालिटी के पापड़ बनाने का सुझाव देते हुए कहा कि लोगों को इस बात पर यकीन दिलाएं कि वह कभी पापड़ की क्वालिटी के साथ समझौता नहीं करती हैं। उनके पापड़ के क्वालिटी और स्वाद को देखते हुए इनकी मांग काफी बढ़ गई। इसके बाद पापड़ बनाने वाली इस संस्था का का नाम “लिज्जत पापड़” रख दिया गया। बता दें कि गुजराती में “लिज्जत” का अर्थ होता है “स्वादिष्ट”।

दो साल में डेढ़ सौ से अधिक महिलाएं जुड़ी

मांग बढ़ने के कारण पापड़ बनाने के लिए लोगों की कमी होने लगी। बढ़ती मांगों को देखते हुए इस बिजनेस में ऐसे ही और भी जरूरतमंद महिलाओं को जोड़ा गया। शुरू में सभी महिलाओं को इस टीम का सदस्य बनाया गया। लेकिन बाद में इस काम में जुड़ने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष कर दिया गया। 2 साल के अंदर ही इस संस्था में काम करने वाली महिलाओं की संख्या 150 से अधिक हो गई थी।

काम में वृद्धि होने के कारण अब लिज्जत पापड़ के विज्ञापन अखबारों में आने लगे जिस वजह से बिक्री में और वृद्धि हुई। यही कारण है कि तीसरे साल के अंत तक काम करने वाले औरतों की संख्या 300 से भी अधिक हो गई। दिन प्रतिदिन पापड़ की मांग बढ़ने के कारण सभी महिलाओं को प्रोडक्शन भी बढ़ाने की जरूरत पड़ने लगी।

Lijjat-Papad-History

उस जमाने में शुरू हुआ ‘वर्क फ्रॉम होम’

इतनी सारी महिलाओं का किसी एक घर के छत पर इकट्ठा होकर काम करना संभव नहीं था। इसलिए सभी महिलाओं को अपने घर पर ही पापड़ बना कर संस्था के केंद्र में आकर दे जाने के लिए कहा गया। लेकिन इस वजह से क्वालिटी के साथ किसी प्रकार की समझौता न करने का वादा करने वाली कंपनी के पापड़ के स्वाद में अंतर ना आ जाए इसकी चिंता महिलाओं को सताने लगी।

इस समस्या के समाधान के रूप में सभी महिलाओं को पापड़ बनाने के लिए आवश्यक सामग्रियों का मिश्रण तौल कर दिया जाने लगा। जिसे वह अपने घर पर ले जाती और पापड़ बनाने के बाद केंद्र में वापस दे जाती थी। साथ ही सभी महिलाओं को चकला और बेलन भी दिया गया ताकि पापड़ को बेलने में किसी भी महिला को किसी तरह की परेशानी ना हो और पापड़ ओं की मोटाई एक जैसी रहे।

विदेशों में भी लिज्जत पापड़ को मिली लोकप्रियता

भारत में विख्यात होने के साथ-साथ लिज्जत पापड़ की लोकप्रियता विदेशों में भी बढ़ने लगी। इस वजह से 1990 की शुरुआत तक पापड़ का निर्यात विदेशों में भी होने लगा। इनमें यूनाइटेड किंगडम, यूनाइटेड स्टेट्स, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे देश शामिल हैं। बढ़ती लोकप्रियता के कारण बाजार में लिज्जत पापड़ के नाम से ही कई सारे नकली पापड़ भी आने लगे। लेकिन पुलिस द्वारा कार्रवाई किए जाने के बाद इनमें कमी आ गई।

आज बन गई है 1600 करोड़ की कंपनी।

आज के समय में भारत में लिखित पापड़ के 82 ब्रांच है जिनमें लगभग 45,000 महिलाएं काम करती है। 2019 के एक रिपोर्ट के अनुसार लिज्जत पापड़ की सालाना आय 1600 करोड़ रुपए से भी अधिक है। इसीके साथ “लिज्जात पापड़” एक कंपनी जो केवल ₹80 से शुरू हुई और आज उसका सालाना आय 1600 करोड़ रुपए से भी अधिक है। साथ ही वह 45,000 महिलाओं को भी जीविका दे रही है।

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