राष्ट्रीय

मां-बाप मनरेगा मजदूर और बेटी आईएएस अधिकारी

डेस्क: कहते हैं ना कि सपने बड़े देखने चाहिए और उसे पूरा करने के लिए जी जान लगा देनी चाहिए। इरादा पक्का हो तो मुश्किल कुछ भी नहीं । ऐसा ही कुछ सपना गरीब मजदूर परिवार ने भी देखा था । मनरेगा के तहत मजदूरी करनेवाले आदिवासी मां-बाप ने अपनी बेटी को सबसे ऊंचा मुकाम पर देखने का सपना देखा था। खुद तो अनपढ़ थे, लेकिन बेटी को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा देने का संकल्प लिया था। अंततः उनका सपना सच हुआ और मनरेगा मजदूरों की यह बेटी केरल की पहली आदिवासी महिला आईएएस अधिकारी बनी ।

हम बात कर रहे हैं केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम यानी त्रिवेंद्रम से करीब साढे 400 किलोमीटर दूर गांव पोजूथाना की रहने वाली श्रीधन्या सुरेश के माता-पिता की । श्रीधन्या सुरेश केरल की पहली आदिवासी महिला आईएएस अधिकारी हैं। वह कुरीचिया जनजाति से ताल्लुक रखती हैं। श्रीधन्या की पूरी कहानी काफी प्रेरणादायी है। उसकी कहानी में घोर गरीबी है, समाज से संघर्ष है, राजनीतिक उपेक्षाए हैं और इन सब कठिनाइयों से लंबी लड़ाई कर उससे जीतने का हौसला है। इस लड़ाई में जीत का श्रेय जितना श्रीधन्या सुरेश को जाता है, उतना ही उसके माता-पिता को भी ।

श्रीधन्या सुरेश ने 22 साल की उम्र में यह कमाल कर दिखाया है । वह अपने राज्य की पहली जनजाति महिला आईएएस अधिकारी बनी। आईएएस की परीक्षा में 2018 में उन्होंने 410 वा रैंक हासिल किया।

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श्रीधन्या के गांव के अधिकतर लोगों ने स्कूल नहीं देखा

हम श्रीधन्या सुरेश की सक्सेस स्टोरी के साथ उनके माता-पिता के संघर्ष की कहानी भी जानेंगे। श्रीधन्या सुरेश का गांव केरल के वायनाड जिले के सबसे पिछड़े इलाकों में है, हालांकि यहां के सांसद राहुल गांधी है। यह इतना पिछड़ा इलाका है कि यहां के अधिकतर लोग कभी स्कूल का शक्ल भी नहीं देखे । पढ़ाई लिखाई क्या होती है, इसके बारे में भी बहुत लोग जानते तक नहीं, लेकिन इन्हीं सबके बीच श्रीधन्या सुरेश के माता-पिता भी हैं, जो खुद तो पढ़े लिखे नहीं, लेकिन शिक्षा के महत्व को जानते थे । इसीलिए अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की ठानी थी। वे जानते थे कि शिक्षा ही एकमात्र माध्यम है, जो उन्हें उनके परिवार को गरीबी और दयनीय स्थिति से उबार सकती है।

श्रीधन्या सुरेश के पिता जंगलों में रह कर वहां की लकड़ियों से टोकरी, हथियार, तीर धनुष बनाया करते थे और उसे गांव के बाजार में जाकर बेचते थे । इससे घर चलाना मुश्किल था तो सरकारी परियोजना मनरेगा में भी दोनों पति-पत्नी काम करते थे, लेकिन बच्चों को पढ़ाई से दूर कभी नहीं होने दिया।

बच्चों की शिक्षा से समझौता नहीं की

श्रीधन्या सुरेश और उसके दो और भाई बहन तीनों को उनके माता-पिता ने अच्छी शिक्षा देने की पूरी कोशिश की। श्रीधन्या सुरेश के पिता ने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘हमारे जीवन में तमाम कठिनाइयां थीं, लेकिन हमने कभी भी बच्चों की शिक्षा से समझौता नहीं की। आज श्रीधन्या सुरेश ने जो मुकाम हासिल की। यह मेरे लिए उस प्रतिज्ञा और परिश्रम का फल है।

श्रीधन्या सुरेश ने सेंट जोसेफ कॉलेज से जूलॉजी में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने कालीकट विश्वविद्यालय में पोस्ट ग्रेजुएशन किया । कालीकट विश्वविद्यालय कोझीकोड में है। अपना पोस्ट ग्रेजुएशन कंप्लीट करने के बाद श्रीधन्या सुरेश अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में क्लर्क की नौकरी करने लगी । इसके बाद वह कुछ दिनों तक आदिवासी हॉस्टल में वार्डन के तौर पर अपनी सेवा दी। इसी बीच उसकी मुलाकात वहां के कलेक्टर साहब से हुई।

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कलेक्टर साहब ने दी यूपीएससी की तैयारी की सलाह

कलेक्टर साहब का रुतवा देख कर वह काफी प्रभावित हुई। कलेक्टर साहब ने ही उसे सुझाव दिया कि वह यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करे। इसके श्रीधन्या सुरेश ने ठान लिया कि वह भी आईएएस अफसर बनेगी। उसके लिए कड़ी मेहनत शुरू कर दी। वह परीक्षा की तैयारी के लिए ट्राईबल वेलफेयर की ओर से चलाए जा रहे सिविल सेवा प्रशिक्षण केंद्र में ट्रेनिंग भी ली । इसके लिए अनुसूचित जनजाति विभाग ने श्री धनिया की आर्थिक मदद भी की ।

2018 में परीक्षा का परिणाम आया और वह 410 वी रैंक हासिल की, लेकिन अभी भी उसकी मुश्किलें कम नहीं हुई थी। परीक्षा में पास होने के बाद साक्षात्कार की सूची में नाम आया, लेकिन साक्षात्कार के लिए दिल्ली जाना था और उसके पास दिल्ली तक जाने रहने के रुपये तक नहीं थे। इसके लिए उसके दोस्तों ने आगे बढ़कर उसकी मदद की और चंदा इकट्ठा कर ₹40000 की व्यवस्था की। फिर श्रीधन्या सुरेश दिल्ली पहुंची और तीन तीसरे प्रयास में उसे सफलता मिली। यूपीएससी में पास होने के बाद उसने अपनी मां को फोन किया।

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श्रीधन्या से मिलने उसके गांव पहुंची थी प्रियंका गांधी

श्री धनिया के पास होने की खबर मीडिया में गई । इसके बाद स्थानीय मीडिया के पत्रकार श्रीधन्या सुरेश के गांव उसके घर पहुंचे । घर की स्थिति काफी दयनीय थी । उसी टूटे-फूटे घर में श्रीधन्या सुरेश ने मीडिया को साक्षात्कार दिया। इस बात की जानकारी क्षेत्र के सांसद राहुल गांधी की दीदी प्रियंका गांधी को भी मिली तो प्रियंका उनके घर मिलने पहुंची।

श्रीधन्या सुरेश ने एक बार पत्रकारों से साक्षात्कार में कहा था, ‘मैं राज्य के सबसे पिछड़े जिले से हूं। यहां से कोई आदिवासी आज तक आईएएस अधिकारी नहीं बना। यहां बहुत बड़ी जनजातीय आबादी है । मुझे उम्मीद है कि मेरी उपलब्धि से नई पीढ़ी को काफी प्रोत्साहन मिलेगा । और भी लोग शिक्षा के प्रति जागरूक होंगे । बच्चों को अधिकारी बनाने के लिए तैयारी करेंगे।

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