ममता बनर्जी को न देना पड़े इस्तीफा, इसके लिए उन्होंने चला अपना दाव
डेस्क: कुछ दिनों पहले ही उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनके इस्तीफा देने का कारण 6 महीने के भीतर उनका विधानसभा का सदस्य न बन पाना है। इसके बाद से ही लोगों ने अंदाजा लगाना शुरू कर दिया था कि शायद ममता बनर्जी को भी अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है।
हालांकि, उनके पास अभी भी उपचुनाव करवाने के लिए वक्त है। लेकिन वर्तमान स्थितियों को देखते हुए चुनावों की मंजूरी नहीं मिल पा रही है। चुनाव के अलावा भी ममता बनर्जी के पास इस्तीफा देने से बचने का एक और उपाय है और वह है विधान परिषद का गठन कर उसका सदस्य बनना।
टिकट न मिलने वाले नेताओं को करेगी खुश
यदि वह विधान परिषद की सदस्य बन जाती है तब भी उनके रास्ते का कांटा साफ हो जाएगा और वह मुख्यमंत्री पद पर बनी रह सकेंगी। इसके लिए आज वह विधानसभा में विधानसभा परिषद बनाने का प्रस्ताव पेश करेंगी। यह प्रस्ताव विधानसभा में पास होने के बाद लोकसभा में पेश किया जाएगा।
बता दें कि चुनाव के पहले ही उन्होंने इस बात की घोषणा की थी कि जिन प्रतिष्ठित नेताओं को विधानसभा चुनाव के लिए टिकट नहीं मिल पाया है, उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया जाएगा। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के कुछ दिन बाद ही उन्होंने कैबिनेट से विधान परिषद बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
क्यों जरूरी है विधान परिषद का बनना?
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान ममता बनर्जी अपने नंदीग्राम सीट से हार गई थी। इस हार के बावजूद उनकी पार्टी के बहुमत से जीतने के कारण वह मुख्यमंत्री बन सकी। चुनाव में हार के कारण वह विधानसभा की सदस्य नहीं है।
यदि शपथ ग्रहण के 6 माह के भीतर वह विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य नहीं बनती है, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। विधानसभा का सदस्य बनने के लिए उन्हें किसी सीट पर पुनः चुनाव करवाकर उस में जीत हासिल करनी होगी। वर्तमान स्थिति में उपचुनाव की संभावना काफी कम दिख रहे हैं। ऐसे में विधान परिषद ही उनका एकमात्र उपाय है।
कैसे मिलती है विधान परिषद के गठन की मंजूरी?
विधान परिषद का गठन करने के लिए सबसे पहले कैबिनेट की मंजूरी मिलनी आवश्यक है। इसके बाद विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव विधानसभा में पेश किया जाता है। विधानसभा में यह प्रस्ताव पारित होने के बाद भारत के संसद के दोनों सदनों में इसे पारित और स्वीकृत कराने की आवश्यकता है।
दोनों सदनों में इसे स्वीकृति मिलने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी की भी जरूरत होती है। तब जाकर विधान परिषद का गठन संभव हो पाता है। विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। बता दें कि वाम दल लगातार ममता बनर्जी के इस कदम का विरोध कर रहे हैं।