कोरोनाकाल की सबसे दर्दनाक घटना हुई सिलीगुड़ी में, पूरा जरूर पढ़ें
डेस्क: कोरोना के संक्रमण से हुई पति की मौत ने महिला को इतना बेसहारा और समाज के रवैये ने इतना खौफजदा कर दिया कि उसने अपनी दो बेटियों के साथ रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज से रेल पटरी पर चलती ट्रेन के सामने छलांग लगा दी.
एक तरफ श्मशान में पति की लाश पड़ी थी और दूसरी तरफ रेल की पटरियों पर वह अपनी दो मासूम बच्चियों के साथ अधमरी हालत में. ट्रेन के सामने कूदने पर महिला के पैर का निचला हिस्सा बुरी तरह घायल हो गया था. शरीर के अन्य हिस्सों में भी काफी चोट लगी थी और पास में खून से लथपथ दर्द से तड़पती उसकी 8 वर्षीय बड़ी बेटी, जिसका बाया हाथ बुरी तरह घायल हो गया था और उसके बगल में महज तीन साल की मासूम बच्ची थी, जिसका पैर घुटने से कट कर अलग हो चुका था और हाथ भी कोहनी से कट कर छिटक गये थे.
पटरियों पर पड़ी इन तीनों के आधे अधूरे खून से सने, कटे-फटे शरीर को देख कर किसी की भी हृदय गति अनियंत्रित हो सकती है. यह सवाल भी जेहन में उठ सकता है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि महिला ने दो मासूम बच्चियों के साथ इतना बड़ा कदम उठाया? क्या इनके पास जीने का कोई मकसद नहीं था? तो चलिये इन्हीं सवालों के जवाब खोजने की कोशिश करते हैं इस महिला की पिछले 2 महीने की जिंदगी के बारे में जान कर. इस महिला की भी जिंदगी हम आपकी तरह आम थी. जहां कल की कुछ यादें, आज की कुछ उलझनें और भविष्य की ढेर सारी योजनाएं थीं.
पति स्कूल के मास्टर थे. समाज में मास्टरजी की जितनी इज्जत थी. उतना ही उनकी बातों का दूसरों पर असर था. अक्सर लोग उनसे पारिवारिक और सामाजिक मसलों पर राय मशविरा किया करते थे और मास्टर जी भी हर मसले पर समाज के लोगों की मदद को आगे रहते थे, लेकिन यह सब कुछ तब तक था, जब तक समाज में कोरोना महामारी का आतंक नहीं फैला था और मास्टर जी इससे संक्रमित नहीं हुए थे, लेकिन इधर मास्टर जी की कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आयी और उनके परिवार और उनके जीवन में सब कुछ निगेटिव होना शुरू हो गया. मास्टरजी की तबीयत खराब होने पर उन्हें तीन जुलाई को सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था. सोमवार शाम में उसकी स्वाब रिपोर्ट पॉजिटिव आयी. इधर उनके कोरोना पॉजिटिव होने की सूचना इलाके में जंगल में आग की तरह फैली. उनके घर को कंटेनमेंट जोन बताया गया. रास्ते को बांस से घेर दिया गया और पूरे परिवार को घर से बाहर निकलने से रोक दिया गया. इसके बाद से समाज ने ऐसी सोशल डिस्टेंसिंग बनायी कि परिवार के दर्द, उनकी परेशानी, उनकी व्यथा को सुननेवाला कोई नहीं था. पति की हालत को लेकर दो बच्चों के साथ चिंतित महिला स्थिति और सामाजिक अवहेलना के कारण मानसिक तनाव का शिकार हो गयी. पति जिला अस्पताल में वेंटिलेटर पर था.
इधर घर से निकलने की मनाही थी. छोटी-छोटी दोनों बच्चियां पिता के बारे में पूछती और वह उन दोनों को देख उनके भविष्य के बारे में सोचती. इस बीच, इलाज के दौरान सोमवार देर रात संक्रमित शिक्षक की मौत हो गयी. इसकी सूचना पाकर महिला को गहरा सदमा पहुंचा. इस गंभीर शोक काल में भी कोई नहीं था पास में, क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग थी, जो अब और बढ़ गयी थी. वह घर से मंगलवार सुबह अपनी दोनों बच्चियों के साथ निकली श्मशान घाट जाने के लिए जहां उसके पति की लाश चिता पर पड़ी थी.
घर से निकलने पर पड़ोसियों का छिटक कर दूर भागना, उनकी दरेरती नजरें ऐसा महसूस करा रहा था कि जैसे उसके पति ने कोई बड़ा कर दिया हो और उसे पुलिस पकड़ ले गयी हो. यहां बहते आंसू को पोछनेवाला कोई नहीं था, हर वक्त मास्टरजी के आगे-पीछे घूमनेवाले, उनके घर पर जमे रहनेवाले आज पीठ दिखा कर खिसक रहे थे. श्मशान में स्वास्थ्य विभाग के लोग उसके पति के दाह संस्कार की तैयारी में जुटे थे.
महिला सीमा महतो अपने पति की कोरोना से मौत के बाद समाज के रवैये से इस तरह खौफजदा हुई कि वह मंगलवार दोपहर में अपनी दोनों बेटियों के साथ पति के अंतिम दर्शन के लिए श्मशान घाट की ओर न जाकर दोपहर एक बजकर 50 मिनट पर न्यूजलपाइगुड़ी स्टेशन के तीन नंबर प्लेटफार्म पर आ रही डाउन अगरतला-दिल्ली एक्सप्रेस ट्रेन के सामने फुटओवर ब्रिज से कूद गयी, लेकिन ऊपरवाला उन्हें कुछ वक्त और देना चाहता था. तीनों को अति गंभीर हालत में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एनबीएमसीएच) भर्ती हैं, जहां उनकी मौत से जंग जारी है.
पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में हुई यह घटना आपको बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देगी. यह घटना किसी एक पटकथा लेखक की सर्वश्रेष्ठ रचना हो सकती है. यह घटना इस पूरे महामारी काल को अपने आप में समेटी हुई है और यह बयां कर रही है कि कैसे एक बीमारी ने पूरे समाज को प्रभावित कर दिया. समाज को इसने कितना असहिष्णु बना दिया और एक परिवार को कितना मजबूर.
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