पश्चिम बंगाल

बंगाल के राज्यपाल ने कहा : ममता राज आपातकाल जैसा

डेस्क: ‘आपातकालीन समय का काला दौर हमें कई चीजों पर ध्यान केंद्रित करने की याद दिलाता है. पहली‌ लोकतंत्र की महत्ता, दूसरी मानवाधिकार का मूल्य और तीसरी मीडिया की स्वतंत्रता. अगर ममता बनर्जी नित पश्चिम बंगाल सरकार के शासन में स्थिति का आकलन करें तो पता लगेगा कि यहां भी हालात आपातकाल के जैसे हैं.

सच्चाई यह है कि आपातकाल लोकतंत्र और मानवीय मूल्यों के लिए विनाशकारी है. लोकतंत्र कभी भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के बिना नहीं पनप सकता है. मौन और वैज्ञानिक रिगिंग लोकतंत्र के विध्वंसक हैं. लोगों को फिलहाल इसके लिए एकजुट होकर इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी.’ 1975 में 25 जून को ही आधी रात देश में लगे आपातकाल को याद करते पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने ट्विटर पर यह बातें कहीं.

वह लगातार पश्चिम बंगाल में ममता सरकार की आलोचना करते आ रहे हैं. हर मौके पर ममता बनर्जी को उन्होंने विपक्ष से बेहतर तरीके से घेरते नजर आते हैं. इस बार भी उन्होंने आपातकाल की तुलना पश्चिम बंगाल की ममता सरकार से कर दी.

उन्होंने कहा कि आपातकाल के बारे में युवाओं को जानने की जरूरत है, ताकि लोकतंत्र की रक्षा हो सके. राज्यपाल ने एक बयान जारी कर कहा कि आपातकाल 25 जून, 1975 को लगाया गया था और यह आजाद भारत के बाद का सबसे काला समय था, जब 21 महीने तक मानवाधिकार, मीडिया की स्वतंत्रता, सिविल लिबर्टीज को निलंबित और बंद कर दिया गया था.

उन्होंने कहा कि देश के प्रमुख राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी, मधु दंडवते सहित कई नेता गिरफ्तार किये गये. लोकतंत्र को कुचल दिया गया. उन्होंने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि मानवाधिकारों के मामलों की चिंताजनक स्थिति की अनदेखी करना, कानून के शासन को कमजोर करना, संविधान की अवहेलना ऐसे पहलू हैं, जो लोकतंत्र के खिलाफ है. शासन में अतिरिक्त-संवैधानिक प्राधिकरण का उदय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है. राज्य में इन के खतरनाक निशान स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं और इन पर रोक लगाने की आवश्यकता है. राज्यपाल ने मीडिया को स्वतंत्र व निडर होकर कार्य करने देने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि यह विशेष रूप से हमारे युवाओं के लिए लोकतंत्र की रक्षा और इसे मजबूत करने के लिए योद्धा होने का समय है.

राज्यपाल ने कहा कि राज्य में मानवाधिकार उल्लंघन की स्थिति, मीडिया पर नियंत्रण, पक्षपातपूर्ण पुलिस कार्रवाई और संवैधानिक प्राधिकरण को रिमोट कंट्रोल से नियंत्रित करने जैसी प्रवृत्ति से बचना होगा. उन्होंने अंत में कहा कि हमारी युवा पीढ़ी को हमारे लोकतंत्र के इस काले अध्याय और दुखद गाथा के बारे में अच्छी तरह से बताया जाना चाहिए क्योंकि यह उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खड़े होने के लिए प्रेरित करेगा.

आपको याद दिला दें कि 1975 में 25 जून को ही आधी रात के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था. विपक्ष के अधिकतर नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया था और मीडिया पर सेंसरशिप लगा दिया गया था. सरकार की निन्दा करने वालों की गिरफ्तारियां होती थी और देशद्रोह की धाराओं के तहत मामले दर्ज किये जाते थे. इसकी बरसी की पूर्व संध्या पर भी राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने बयान जारी किया था, जिसमें बंगाल के वर्तमान हालात की तुलना आपातकाल से की थी और उसके खिलाफ युवाओं को एकजुट होने का आह्वान किया है.

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