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ओडिशा ट्रेन हादसा: ‘पता नहीं कहां है? कैसा है?’- कोरोमंडल एक्सप्रेस के लोको पायलट का परिवार

डेस्क: ओडिशा में बालासोर ट्रेन हादसे के लगभग दो सप्ताह से अधिक समय बीत जाने के बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस के गंभीर रूप से घायल लोको पायलट के परिवार ने कहा कि उन्हें अभी तक उनकी कोई खबर नहीं मिली है। उनके पास कोई जानकारी नहीं है कि वह कैसे हैं और कहां है।

चेन्नई जाने वाली कोरोमंडल एक्सप्रेस के 49 वर्षीय लोको पायलट गुनानिधि मोहंती 36 वर्षीय सहायक लोको पायलट हजारी कुमार बेहरा के साथ ट्रेन चला रहे थे, जब 2 जून की शाम को बालासोर जिले के बहनागा बाजार स्टेशन के पास ट्रेन ने लूप लाइन पर खड़ी मालगाड़ी को टक्कर मारी।

इस दौरान गुणनिधि कोरोमंडल एक्सप्रेस के लोको पायलट केबिन में थे, उनके सिर, छाती और पीठ पर गंभीर चोटें आईं, क्योंकि ट्रेन सिग्नल सिस्टम में संदिग्ध हस्तक्षेप के बाद 128 किमी प्रति घंटे की गति से वह ट्रेन जाकर मालगाड़ी से टकरा गई।

कड़ी निगरानी में हो रहा इलाज

शुरुआत में भुवनेश्वर के एक निजी अस्पताल में तीन टूटी हुई हड्डियों और सिर की कई चोटों के साथ भर्ती कराया गया, गुणनिधि और सह-पायलट बेहरा पहले 10 दिनों तक राज्य पुलिस और रेलवे सुरक्षा बल के अधिकारियों की कड़ी निगरानी में थे, जब तक कि चार दिन पहले कथित तौर पर उन्हें वहाँ से छुट्टी नहीं मिल गई।

बेहरा को अपने बाएं पैर में फ्रैक्चर और रीढ़ की हड्डी की चोट सहित कई अन्य जगहों पर चोटें आईं। बता दें कि उनकी पत्नी गोलप बेहरा भी ईस्ट कोस्ट रेलवे में सहायक लोको पायलट हैं।

कटक जिले के नाहरपाड़ा गांव में रहने वाले हजारी कुमार बेहरा के पिता बिष्णु चरण मोहंती और बड़े भाई संजय मोहंती ने उनकी स्वास्थ्य स्थिति को लेकर गहरी चिंता जताई। उनके अनुसार उन्हें अपने बेटे से मिलने नहीं दिया जा रहा है।उन्हें उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है कि वह कहां है और कैसा है!

Loco pilot of Coromandel Express undergoing treatment

 

हमें उनसे मिलने नहीं दिया गया : संजय मोहंती

गुणनिधि के बड़े भाई संजय ने कहा “दुर्घटना के दो-चार दिन बाद ही मैं उनसे मिलने गया था। वह बुरी तरह जख्मी था और बात नहीं कर पा रहा था। तब वे आईसीयू में थे। उसके बाद हमें उनसे मिलने नहीं दिया गया।” हालांकि वह इस बात की पुष्टि नहीं कर सके कि गुनानिधि की पत्नी को उनसे मिलने की अनुमति दी गई थी या नहीं।

“हम एक अनिश्चित स्थिति में हैं। सभी को लगता है कि हादसा मेरे भाई की गलती से हुआ जबकि सच तो यह है कि लोको पायलट का इस बात पर कोई नियंत्रण नहीं होता कि ट्रेन किस ट्रैक पर चलेगी। यह ऑन-ड्यूटी स्टेशन मास्टर का कर्तव्य है जो किसी विशेष ट्रेन को उस लाइन पर यात्रा करने की अनुमति देता है। वैसे भी कोरोमंडल एक्सप्रेस को उस सेक्शन पर 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से यात्रा करने की अनुमति थी, जबकि वास्तविक गति 128 किमी प्रति घंटा थी।

ज्ञात हो कि गुणनिधि ने 1996 में मालगाड़ी चालक के रूप में शामिल होने के बाद, उन्होंने कुछ साल पहले यात्री ट्रेनों को चलाना शुरू किया था। उनके साथ अब तक कोई दुर्घटना नहीं हुई थी।

सीबीआई और रेल सुरक्षा आयुक्त की दोहरी जांच

ईस्ट कोस्ट रेलवे के अधिकारियों ने कहा कि गुनानिधि और बेहरा ने 2 जून को शाम करीब 5 बजे खड़गपुर स्टेशन पर लोको पायलट रणजीत कुमार मोंडल से कार्यभार संभाला था। उक्त मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और रेल सुरक्षा आयुक्त की दोहरी जांच चल रही है।

ट्रेन त्रासदी के एक दिन बाद, ऑपरेशन एंड बिजनेस डेवलपमेंट के रेलवे बोर्ड के सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने ड्राइवर से बात की थी और उन्होंने पुष्टि की कि सिग्नल हरा था।

बता दें कि ग्रीन सिग्नल का मतलब है कि आगे का रास्ता साफ है और वह अपनी अनुमत अधिकतम गति के साथ आगे बढ़ सकता है। इस खंड पर अनुमत गति 130 किमी प्रति घंटा थी और वह अपनी ट्रेन 128 किमी प्रति घंटे की गति से चला रहा था जिसकी पुष्टि लोको लॉग से की गई है।

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