तीरथ सिंह रावत के बाद अब ममता बनर्जी की बारी, छोड़ना पड़ सकता है मुख्यमंत्री पद!
डेस्क: उत्तराखंड कि राजनीति में बीते दिन बड़ी उलटफेर हुई। संवैधानिक संकट के शिकार हुए तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। ऐसे में सवाल होता है क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी अपना मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ सकता है?
बात करें उत्तराखंड की तो तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनने के बाद भी 6 माह के भीतर विधानसभा के सदस्य ना बन पाने की वजह से अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। दरअसल अनुच्छेद 164 (4) के अनुसार यदि कोई मंत्री 6 माह के अंदर विधान सभा विधान परिषद का सदस्य नहीं होता है, तो उस मंत्री का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा।
ममता बनर्जी पर भी मंडरा रहा संवैधानिक संकट
बता दें कि उस पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अभी भी विधानसभा की सदस्य नहीं है। ऐसे में पश्चिम बंगाल की स्थिति है उत्तराखंड के जैसी ही दिखाई पड़ रही है। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने बहुमत से जीत हासिल की लेकिन पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी अपने सीट से चुनाव हार गई।
4 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए 6 महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना उनके लिए आवश्यक हो गया। उनके पास 6 महीने अर्थात 4 नवंबर तक का समय है। यदि वह ऐसा नहीं कर पाती है तो उन्हें भी तीरथ रावत सिंह की तरह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है।
चुनावों को किया गया स्थगित
फिर से चुनाव लड़कर विधानसभा का सदस्य बनने के लिए उन्होंने भवानीपुर सीट खाली तो करवा दी। लेकिन तय सीमा के अंदर चुनाव ना होने पर विधानसभा का सदस्य नहीं बन सकती। अभी तक विधानसभा की सदस्यता ना मिलने पर उनके मुख्यमंत्री पद पर खतरा बना हुआ है।
उन्होंने चुनाव आयोग के पास उपचुनाव की अपील भी की थी जिसे चुनाव आयोग ने फिलहाल खारिज कर दी। वर्तमान में महामारी की स्थिति को देखते हुए केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने सभी प्रकार के चुनाव को स्थगित किया हुआ है। यह ममता बनर्जी के लिए एक चिंता का विषय बन गया है।
विधान परिषद का दाव हुआ फेल
ऐसे में अगर नवंबर तक चुनाव आयोग भवानीपुर में उपचुनाव के बारे में फैसला नहीं लेता है ममता बनर्जी को संवैधानिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। इससे बचने के लिए ममता बनर्जी ने विधान परिषद का गठन करवाने का फैसला लिया था जिसका प्रस्ताव विधानसभा में पारित हो गया। लेकिन बिना लोकसभा की मंजूरी के विधान परिषद का गठन संभव नहीं है।
जिस प्रकार का रिश्ता ममता बनर्जी का केंद्र सरकार के साथ है उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि लोकसभा में विधान परिषद के प्रस्ताव के पारित होने की संभावना काफी कम है। ऐसे में संवैधानिक संकट से बचने का एकमात्र रास्ता भवानीपुर सीट पर उपचुनाव ही है।