नारदा मामले में आरोपियों के वकील ने कोर्ट रूम में पूछ दिया ऐसा सवाल कि जवाब नहीं दिए सॉलिसिटर जनरल
डेस्क: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक राजनीतिक नाटक खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। यहां हर गतिविधि में केंद्र बनाम राज्य की राजनीति हो रही है। चाहे वह सीबीआई की कार्यवाही हो या फिर प्राकृतिक आपदा चक्रवाती तूफान हो या कोविड-19 महामारी और उसके वैक्सीन का मामला हो।
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सरकार और इसके नेता-मंत्री केंद्र की मोदी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वहीं केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी लगातार ममता बनर्जी को घेरा जा रहा है।
यह केंद्र बनाम राज्य का यह तू तू मैं मैं अदालत में भी देखने को मिल रहा है। जी हां, पिछले दिनों नारदा मामले की सुनवाई के दौरान मामले में गिरफ्तार आरोपी राज्य के दो मंत्री और पूर्व तृणमूल नेताओं के वकील ने सीबीआई की तरफ से पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल से ऐसा सवाल पूछ दिया कि उन्होंने जवाब देने से पूरी तरह इनकार कर दिया।
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उन्होंने कहा, मैं केवल कानूनी सवालों का जवाब दे सकता हूं। यहां मुझसे कोई राजनीतिक सवाल ना पूछे?
दरअसल आरोपियों के वकील ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि मामले में मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी को पार्टी क्यों नहीं बनाया? क्या इस यह इसीलिए हुआ है कि वह दोनों भारतीय जनता पार्टी में चले गए हैं? इस सवाल का जवाब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने देने से इनकार कर दिया ।
गौरतलब है कि कोलकाता हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए जिन 5 जजों की बेंच बनाई है, उसमें एक्टिंग सीजे जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस अरिजीत बनर्जी शामिल हैं। टीएमसी नेताओं की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी, सिद्धार्थ लूथरा, कल्याण बंधोपाध्याय ने जिरह की।
कोर्टरूम में दोनों पक्षों के वकीलों में तीखी बहस हुई। आरोपियों के वकील कल्याण बंधोपाध्याय ने कहा कि आर्टिकल 226 (3) के मुताबिक कोर्ट को पहले एक्स पार्टी आर्डर के मामले में वकेशन एप्लीकेशन पर पहले सुनवाई करनी होगी। मेहता ने कहा कि आरोपियों की अरेस्ट पर स्टे आर्डर आर्टिकल 226 के तहत 17 मई को दिया गया था। आर्टिकल 226 (3) कहता है कि कोर्ट को स्टे पर रिकॉल एप्लीकेशन की सुनवाई दो सप्ताह के भीतर करनी ही होगी। लिहाजा उनकी दरखास्त पर पहले सुनवाई की जाए।
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सुनवाई के दौरान हंसी मजाक भी देखने को मिला। बंधोपाध्याय ने सिंघवी से कहा कि वो राज्यसभा सांसद हैं। उन्हें विधायक चुनते हैं जबकि वो खुद लोअर हाउस (लोकसभा) के सदस्य हैं। उन्हें जनता चुनती है। लिहाजा उनकी संवेदनाएं लोगों की तरफ हैं। इस पर मेहता ने कहा कि ऐसे तो उनका कोई घर ही नहीं है। सिंघवी और लूथरा ने कोर्ट से कहा कि इस समय बड़ा मसला आरोपियों की रिहाई है।
जस्टिस मुखर्जी ने कहा कि मामला अब उनके सामने है और उन्हें ही तय करना है कि अरेस्ट कानूनी है या फिर गैर कानूनी। कोर्ट को लगता है कि प्रथम दृष्टया उसे इसी बात पर विचार करना चाहिए। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि अगर बेल दे दी जाती है तो सारा मामला ही खत्म हो जाएगा। इस पर सिंघवी ने कहा कि मेहता की दलीलों से लगता है कि वो बेल के अलावा बाकी सभी पहलुओं पर चर्चा के लिए राजी हैं। उनका कहना था कि बाकी के मामलों पर बाद में भी चर्चा हो सकती है। बेल का मसला बेहद महत्वपूर्ण है।
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बंधोपाध्याय ने कहा कि वो 40 साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं, पर उन्होंने ऐसा वाकया कोर्ट में नहीं देखा। उनका कहना था कि कोर्ट का रवैया देखकर वो बेहद निराश हैं। हम यहां एकेडमिक डिबेट में नहीं हैं जो बेवजह भाषणबाजी सुनते रहें। उनका कहना था कि सबसे पहले डबल बेंच के 17 मई के स्टे पर सुनवाई होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि साइक्लोन की वजह से उनके मुवक्किल काम नहीं कर पा रहे हैं। इस पर जज ने कहा कि हम सभी इस समय हाउस अरेस्ट में हैं।
मेहता ने कहा कि भीड़तंत्र के जरिए अगर ऐसे ही सिस्टम पर दबाव बनता रहा तो ये प्रैक्टिस गैंगस्टर भी अपनाने लगेंगे। इससे आम आदमी का विश्वास डिग जाएगा। मेहता ने कहा कि वो ये टिप्पणी जज के खिलाफ नहीं कर रहे हैं। उनका कहना था कि राज्य सरकार ने जिस तरह से सीबीआई दफ्तर का घेराव किया वो चौंकाने वाला था।
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हाउस अरेस्ट में हैं सारे आरोपी
गौरतलब है कि बंगाल के मंत्री फरहाद हकीम और सुब्रत मुखर्जी को नारद रिश्वत केस में सोमवार सुबह गिरफ्तार किया गया था। उनके अलावा टीएमसी विधायक मदन मित्रा और पार्टी के पूर्व नेता सोवन चटर्जी भी अरेस्ट हुए। हालांकि, सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने सभी को जमानत दे दी थी, लेकिन हाईकोर्ट की डबल बेंच ने स्पेशल कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। फिलहाल सभी आरोपी हाउस अरेस्ट में हैं।