गोधरा कांड के 8 आरोपियों को SC ने दी जमानत, फैसले का हो रहा विरोध
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2002 के गोधरा ट्रेन कोच जलाने के मामले में आठ दोषियों को जमानत दे दी। हालांकि शीर्ष अदालत ने अन्य चार दोषियों की भूमिका को देखते हुए उनकी जमानत अर्जी पर विचार करने से इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने आठों दोषियों को जमानत दे दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा को उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास में बदल दिया है और राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील की है।
बता दें कि निचली अदालत ने 11 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी। बाद में गुजरात उच्च न्यायालय ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।
SC के फैसले का हो रहा विरोध
गुजरात सरकार ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि 2002 के गोधरा ट्रेन कोच जलाने के मामले के दोषी गंभीर अपराधों में शामिल थे क्योंकि उन्होंने पथराव किया और ट्रेन के दरवाजे को बंद कर दिया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि यह सिर्फ पथराव का मामला नहीं है, बल्कि आरोपियों ने ट्रेन के दरवाजे को बाहर से बंद किया और फिर पथराव किया। हालांकि, दोषियों के वकीलों ने कहा कि उन्होंने 17 साल जेल में काटे हैं।
अदालत ने सोमवार को यह भी टिप्पणी की कि वह मौत की सजा पाने वालों को जमानत नहीं देने पर विचार कर रही है।
पिछली सुनवाई में, SC ने 2002 के गोधरा ट्रेन कोच-बर्निंग मामले से संबंधित मामलों में दोषियों की विशिष्ट भूमिका, उनकी उम्र और उनके द्वारा जेल में बिताए गए समय का उल्लेख करते हुए एक चार्ट मांगा था।
गुजरात राज्य की नीति का उलंघन : तुषार मेहता
गुजरात राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दोषियों की जमानत याचिकाओं का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह बहुत गंभीर अपराध है। उन्होंने यह भी कहा कि दोषियों के मामलों को गुजरात राज्य की नीति के तहत समय से पहले रिहाई के लिए नहीं माना जा सकता है क्योंकि उनके खिलाफ टाडा प्रावधानों को लागू किया गया था।
अदालत इस मामले में कुछ दोषियों की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। राज्य सरकार ने गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ भी अपील दायर की है जिसमें कुछ दोषियों की सजा को मृत्युदंड से आजीवन कारावास में बदल दिया गया है।
ज्ञात हो कि 27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में आग लगने से लगभग 58 लोगों की जान चली गई थी।
इस घटना ने गुजरात में बड़े पैमाने पर दंगे भड़काए। 2011 में एक स्थानीय अदालत ने 31 अभियुक्तों को दोषी ठहराया और 63 लोगों को बरी कर दिया। 11 अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई गई जबकि बाकी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
बाद में गुजरात उच्च न्यायालय ने 31 अभियुक्तों को दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन 11 की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। जिसके बाद दोषियों ने गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।