नेहरू की ‘आदिवासी पत्नी’ से लेकर देश की आदिवासी राष्ट्रपति तक, इतनी अलग है बुधनी और द्रौपदी की कहानी
डेस्क: 25 जुलाई 2022 को उड़ीसा के संथाल समुदाय के द्रौपदी मुर्मू ने देश के 15वीं राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ग्रहण किया। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्रौपदी मुर्मू का साथ देकर आदिवासी समाज की एक महिला को देश के सर्वोच्च संविधानिक पद पर बैठाकर आदिवासी समाज को विकास की मुख्यधारा में लाने का काम किया है।
लेकिन इससे पहले भी के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक आदिवासी महिला का साथ दिया था जिससे उसकी पूरी जिंदगी ही बर्बाद हो गयी थी। दरअसल, 6 दिसंबर 1959 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एक बांध का उद्घाटन करने के लिए धनबाद के दौरे पर थे। यह वह दौर था जब आदिवासियों के हितैषी होने की राजनीती ने जोर पकड़ना शुरू ही किया था।
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आदिवासी लड़की बुधनी मांझी की कहानी
इसे ही ध्यान में रखते हुए दामोदर घाटी निगम ने प्रधानमंत्री नेहरू के स्वागत के लिए एक 15 वर्षीय आदिवासी लड़की बुधनी मांझी को चुना था। प्रधानमंत्री भी चाहते थे कि बांध का उद्घाटन किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए जिसने इसके निर्माण पर काम किया हो।
प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए चुने जाने पर बुधनी बेहद खुश थी। लेकिन उसे कहां पता था कि यह दिन उसकी जिंदगी का एक बेहद काला दिन होने वाला है।
उद्घाटन से पहले बुधनी मांझी को प्रधानमंत्री को माला पहनकर स्वागत करने को कहा गया तो बुधनी ने भी ऐसा ही किया। चूंकि यह एक आदिवासी महिला द्वारा उद्घाटन किया जा रहा पहला बांध था, जवाहरलाल नेहरू ने भी बुधनी को प्रशंसा के निशान के रूप में एक माला दी। यहीं से बुधनी मांझी के जीवन ने एक नया मोड़ ले लिया।
नेहरू की तथाकथित आदिवासी पत्नी
उसी रात इस विषय पर चर्चा करने के लिए संथाली समाज की पंचायत को बुलाया गया था। बुधनी को बताया गया कि आदिवासी परंपराओं के अनुसार अब उसकी शादी जवाहरलाल नेहरू से हो गयी है, क्योंकि दोनों ने मालाओं का आदान-प्रदान किया था। साथ ही आदिवासी परंपराओं के अनुसार नेहरू जो अब उनके पति घोषित किये गए थे, एक गैर-आदिवासी थे, इसलिए बुधनी का संथाली समुदाय द्वारा बहिष्कार कर दिया गया।
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उस समय, बुधनी दामोदर घाटी निगम में काम करती रही। लेकिन जल्द ही गांव वालों के दबाव के कारण 1962 में उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया गया। बाद में वह झारखंड चली गईं और वहां 7 साल तक गुजारा करने के लिए संघर्ष किया। वहां वह सुधीर दत्त नाम के एक शख्स से भी मिली, जिससे वह काफी करीब थी।
वे शादी करना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि उन्हें अपने समाज का डर था। हालाँकि, उन्होंने एक साथ रहना जारी रखा और उनके तीन बच्चे भी हुए।
राजीव गांधी ने वापस दिलाई नौकरी
बताया जाता है कि 1985 में जब राजीव गांधी को बुधनी के बारे में पता चला तो उन्होंने उसे ढूंढ लिया और बुधनी उससे मिलने भी गई। जिसके परिणामस्वरूप, उन्हें दामोदर घाटी निगम में अपनी नौकरी वापस मिल गई।
2016 में जब उनसे पूछा गया कि अब उनकी क्या इच्छाएं हैं, तो उन्होंने कहा, “मैं राहुल गांधी से अपील करती हूं कि हमें मेरी बेटी के लिए एक घर और नौकरी दिलाएं, ताकि हम अपना शेष जीवन शांति से बिता सकें।”
बुधनी के साथ बांध का उद्घाटन करने वाले रावद मांझी ने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था, “जवाहरलाल नेहरू ने हमें मुफ्त बिजली और घर देने का वादा किया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ”। बुधनी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह उस घटना को याद नहीं करना चाहते।
एक आदिवासी महिला 1959 से इस तरह की रूढ़िवादिता की शिकार हुई और लगातार प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ती रही। यह विडंबना है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का नाम बुधनी मांझी की दुर्दशा से जुड़ा है।
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