फिल्म रिव्यु – छिछोरे: अरेरेरे पगले फिकर नॉट
छह लूज़र्स के आपस में मिलने की कहानी, इनकी दोस्ती, इनका छिछोरापन और अपने लूजर के टैग को हटाने के लिए संघर्ष की कहानी है
एंटरटेनमेंट डेस्क: कॉलेज कैंपस , दोस्ती, मुहब्बत और वार्षिक उत्सव में जीत के लिए प्रतिस्पर्धा।
इस पैकेज को परोसकर युवा दर्शक को आकर्षित करना बहुत आसान है पर शर्त है हर बार इस पैकेज में कोई एक चीज़ ऐसी हो जो इसे नायाब बनाये।
चिल्लर पार्टी और दंगल जैसी नेशनल अवार्ड विनिंग फिल्मों के निर्देशन कर चुके नीतेश तिवारी के निर्देशन में बनी फिल्म “छिछोरे” ऐसी ही एक ख़ास श्रेणी में आती है।
जीतने के बाद हमें ये मिलेगा ,हम ऐसे जश्न मनाएंगे ये सब सोचते हैं पर यदि नहीं जीत पाए तो उस हार के साथ आगे कैसे डील करेंगे , कैसे खुदको संभालेंगे ये कोई नहीं सिखाता।
इसी विषय को केंद्रित करते हुए ये कहानी है छह ऐसे लूज़र्स की जो एक ज़िन्दगी से हारे हुए बच्चे को फिर से जीने की उम्मीद देते हैं।
फिल्म की कहानी परत दर परत खुलती है और फ्लैशबैक की कहानी के किरदार वर्तमान में एक एक कर एंट्री लेते हैं।
लूस जीन्स , हेरस्टाइल , वीसीआर ,प्लेबॉय मैगज़ीन जैसी चीज़ो का सहारा लेते हुए जितनी खूबसूरती से अस्सी के दशक को पेश किया गया उतनी ही सफाई से फिल्म के किरदारों को अपनी उम्र से बीस साल बड़े दिखाने के लिए मेहनत भी की गयी है।
हॉस्टल लाइफ ,रैगिंग , स्पर्धा , दोस्ती , प्यार, छिछोरापन और अगर ये बॉयज हॉस्टल की कहानी है तो “बॉयज टॉक” के बिना कैसे पूरी हो सकती है। इन सभी चीज़ों को फिल्म में बहुत ही वास्तविक ढंग से पेश किया गया है, हास्य और संजीदगी में संतुलन बनाते हुए फिल्म आपको ढाई घंटे बांधे रहने में पूरी तरह सफल होती है।
कहानी शुरू होती है अनिरुद्ध पाठक (सुशांत सिंह राजपूत ) और माया (श्रद्धा कपूर ) की टूटी हुई शादी से जिनके बीच की कड़ी है उनका एकलौता बेटा जो एक इम्तिहान में फेल होने के बाद खुदसे और ज़िन्दगी से इतना ख़फ़ा हो जाता है की आत्महत्या की कोशिश कर बैठता है । सौभाग्य से उसकी जान तो बच जाती है पर जीने की मन में कोई चाह न होने के कारण उसकी रिकवरी में कोई प्रोग्रेस नहीं होती और तब अनिरुद्ध तय करता है की वो अपने बेटे को अपनी ज़िन्दगी के उन दिनों में लेकर जायेगा जब लोग उसे और उसके दोस्तों को लूज़र्स कहते थे ताकि वो ये जान सके की हार ज़िन्दगी का अंत नहीं हैं।
और उसी कहानी में वो एक एक कर उसे मिलाता है अपनी कॉलेज लाइफ के साथी लूज़र्स – सेक्सा ( वरुण शर्मा ) , एसिड (नवीन ) , डेरेक (ताहिर राज ) , मम्मी (तुषार पांडेय ) और बेवड़े (सहर्ष कुमार ) से ।
जी हाँ इन सबके अजीब निकनेम सुनकर अनिरुद्ध के बेटे ने भी यही सवाल किया की ये सेक्सा कौन है और क्यों है पर वो जानने के लिए आपको मूवी देखनी पड़ेगी
खैर इन छह लूज़र्स के आपस में मिलने की कहानी , इनकी दोस्ती, इनका छिछोरापन और अपने लूजर के टैग को हटाने के लिए संघर्ष , यही कहानी है फिल्म छिछोरे की।
अगर सबसे बड़ी खूबी की बात करें तो वो ये होगी की फिल्म का नाम ‘छिछोरे’ होने के बावजूद फिल्म के कॉमिक सीन में कोई छिछोरापंती नहीं की गयी है। बस यूँ समझ ले की उतनी ही मस्ती और बदमाशियां हैं जो इस दौर से गुजरने वाले हर एक छात्र करते हैं
कुछ एडल्ट डायलॉग और सीन के साथ भी फिल्म बिना अश्लीलता परोसे गजब का हास्य पैदा करती है
कुछ कुछ सीन तो इतने ज़्यादा हिलेरियस हैं की आपकी हंसी नहीं रुकेगी।
ह्यूमर के मामले में तो फिल्म को पुरे नंबर मिलते हैं।
अभिनय की अगर बात करें तो हर एक कलाकार ने अपने किरदार में जान डाली है और फिल्म को परफॉरमेंस रिच बनाया । किसी भी तरह की ओवरएक्टिंग न होने के लिए निर्देशक नीतेश भी बधाई के पात्र हैं । ग्रे शेड में नज़र आये प्रतिक बब्बर ने भी अपने रोल के साथ बखूबी इन्साफ किया ।
प्रीतम के कम्पोजीशन में बने गाने औसत रहे , गानों के मामले में फिल्म ज़रा पीछे रह गयी पर इसके अलावा आप कोई ख़ास खामी नहीं निकाल पाएंगे जिससे की फिल्म को कुछ कमतर आंका जाए। समय अवधि ज़रा लम्बी है पर उबाऊ बिलकुल नहीं , आखरी पल तक मनोरंजन , हास्य और थ्रिल बरक़रार रखते हुए समाज को एक बेहद महत्वपूर्ण सन्देश देती है फिल्म “छिछोरे”
ज़रूर जाएँ और मुमकिन हो तो दोस्तों के साथ जाएँ
खासकर कॉलेज स्टूडेंट्स और उनके पेरेंट्स को तो ये मूवी ज़रूर देखनी चाहिए।