स्मार्टफोन से फैल रही हैं ये खतरनाक बीमारियां, बन सकती है जानलेवा
डेस्क: सबसे पहले मोबाइल फोन का आविष्कार मोटोरोला कंपनी ने 1984 में किया था। इसका मुख्य उद्देश्य एक स्थान से दूसरे स्थान तक संचार को आसान बनाना था। पहले इसका प्रयोग केवल धनी लोग ही कर सकते थे लेकिन समय के साथ हर वर्ग के लोगों के लिए मोबाइल फोन आम होता चला गया। शुरुआती दौर में मोबाइल फोन का उपयोग केवल संचार के लिए ही किया जाता था। फिर समय के साथ-साथ मोबाइल फोन की बनावट में कई बदलाव किए गए जिसके बाद इनका उपयोग कई अन्य कामों में भी किया जाने लगा।
ऐसे मोबाइल फोन जिनमें गाने सुनने के साथ तस्वीरें लेने और वीडियो बनाने जैसे सुविधाएं होती थी, उन्हें मल्टीमीडिया फोन कहा जाता है। इसके अलावा भी इनमें कई अन्य सुविधाएं होती थी। मल्टीमीडिया फोन के बाद स्मार्टफोन्स का आविष्कार हुआ जिसने जल्द ही हर घर तक अपनी पहुंच बना ली। आज हर घर में कम से कम एक स्मार्टफोन तो जरूर देखने मिल जाएगा।
बच्चों व वयस्कों में हो रही बीमारियां
कोरोना महामारी के बाद से जब सभी स्कूलों में ऑनलाइन क्लासेस करवाए जाने लगे, तब से हर उम्र के बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन का दिखना आम सा हो गया। हाथ में अपना पर्सनल स्मार्टफोन होने की वजह से पढ़ाई के साथ साथ बच्चे सोशल मीडिया और यूट्यूब पर भी अधिक ध्यान देने लगे। महामारी से पहले माता पिता अक्सर यह कोशिश करते थे कि जितना अधिक संभव हो उनके बच्चों को फोन से दूर रखा जा सके। लेकिन 2021 के बाद सब कुछ बदल गया।
यदि बच्चों द्वारा स्मार्टफोन के प्रयोग पर अभिभावकों द्वारा मार्गदर्शन और प्रबंधन किया जाए तो यह उनके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। लेकिन बच्चों द्वारा प्रौद्योगिकी का अत्यधिक उपयोग एक चिंता का विषय भी है क्योंकि इसके कई नकारात्मक प्रभाव हैं जो धीरे-धीरे बच्चों पर पड़ते हैं। इसका प्रभाव न केवल उनकी आंखों पर पड़ता है बल्कि इससे उनके मस्तिष्क का विकास भी बाधित हो सकता है।
आंखों में जलन
लंबे समय तक स्मार्टफोन का प्रयोग करने से बच्चे और व्यस्क दोनों की आंखों में जलन हो सकती है। दोनों ही अपनी आंखों में दर्द का अनुभव कर सकते हैं। हालांकि अभी तक किसी शोध में यह प्रमाणित नहीं हो सका है कि अधिक समय तक स्मार्टफोन अथवा टेलीविजन को देखते रहने से आंखों में कोई स्थाई क्षति होती है। लेकिन लंबे समय तक स्मार्टफोन के उपयोग से आंखों में दर्द, सिर दर्द, आंखों की थकान आदि हो सकते हैं।
अनिद्रा की समस्या
सोने से पहले स्मार्टफोन के अत्यधिक प्रयोग से बच्चों और बड़ों दोनों में ही नींद के पैटर्न में गड़बड़ी की समस्या देखी जा सकती है। इससे अनिद्रा की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है। स्मार्टफोन की स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी के कारण होता है जो आंखों के लिए हानिकारक माने जाते हैं। नींद के पैटर्न में गड़बड़ी न केवल बच्चों के शैक्षणिक जीवन पर प्रभाव डालता है बल्कि यह उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास पर भी प्रभाव डालता है। इतना ही नहीं, नींद की कमी कई अन्य बीमारियों को भी जन्म देती है।
मानसिक स्वास्थ्य को खतरा
स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग से बच्चे सोशल मीडिया के आदी बनते जा रहे हैं। सोशल मीडिया में बच्चे कई साइबरबुलियों के संपर्क में आते हैं और इंटरनेट उत्पीड़न का सामना करते हैं। इसके अलावा अपने साथियों एवं मित्रों के साथ अपनी तुलना कर अधिकांश बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। जब तक इन सब का पता बच्चों के अभिभावकों चलता है, तब तक बहुत देर हो जाती है बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को पहले ही बहुत नुकसान पहुंच चुका होता है।
ट्यूमर का खतरा
विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि स्मार्टफोन के अत्यधिक इस्तेमाल करने वालों में ट्यूमर होने का खतरा औरों के मुकाबले कई गुना बढ़ जाता है। स्मार्टफोन से निकलने वाले विकिरण बच्चों और वयस्कों में ट्यूमर का कारण बन सकते हैं। अतः यह आवश्यक है कि बच्चे और व्यस्क दोनों ही लगातार कई घंटों तक स्मार्टफोन का प्रयोग करने से बचें। यदि किसी कारण अधिक समय तक स्मार्टफोन का प्रयोग करना पड़े तो बीच में ब्रेक अवश्य लें।
गौरतलब है कि स्मार्टफोन युवाओं एवं बच्चों के लिए वरदान के साथ-साथ अभिशाप भी बन गया है। इसका उपयोग यदि सही तरीके से किया जाए तो यह एक बेहतरीन उपकरण बन सकता है। लेकिन इससे गलत प्रयोग से बच्चे और व्यस्को के मस्तिष्क की संरचना में बदलाव हो रहे हैं और उनमें नकारात्मकता बढ़ती जा रही है जिससे वह कई मानसिक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।