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शौचालय के क्षेत्र में आई नई क्रांति, 26 वर्षीय युवक सत्यजीत मित्तल ने बनाए नए तरह के शौचालय

 

डेस्क: भारतीय शौचालय का प्रयोग करना उन लोगों के लिए काफी समस्या भरा होता है जिनके घुटनों में कोई तकलीफ होती है। भारतीय शौचालय का प्रयोग करते वक्त आपके शरीर का सारा वजन आपके घुटनों पर पड़ता है इस वजह से आपके जोड़े प्रभावित होते है। इस समस्या से तंग आकर अधिकांश लोग अब वेस्टर्न टॉयलेट को अपना रहे हैं। लेकिन बता दें कि वेस्टर्न टॉयलेट का प्रयोग हमारे खुद के शरीर के लिए सही नहीं है।

हालांकि वेस्टर्न टॉयलेट में बैठने पर हमारे जोड़ों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि इसकी ऊंचाई जमीन से लगभग 2 फीट ऊपर होती है। वहीं भारतीय शौचालय में बैठने से पूरे शरीर की ताकत घुटनों पर स्थानांतरित हो जाती है। लेकिन विज्ञान की मानें तो भारतीय शौचालय का प्रयोग करना ही हमारे सेहत के लिए अच्छा है। लेकिन इससे हमारे घुटनों को जो तकलीफ होती है उसका क्या?

यदि बहुत देर तक भारतीय शौचालय का प्रयोग करने के बाद आपके भी घुटनों में दर्द हो जाता है तो हम बता दें कि अब यह अतीत बन चुका है। महाराष्ट्र इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के एक छात्र सत्यजीत मित्तल ने “स्क्वाटईज़” नाम के भारतीय शौचालय के आधुनिक रूप का निर्माण किया है। इसी के साथ पुराने डिजाइन वाले भारतीय शौचालय अब अतीत बन चुके हैं।

कैसे मिला नई डिजाइन का आईडिया?

2015 में जब एमआईटी इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन में पढ़ाई कर रहे थे तब इंस्टिट्यूट में स्पेशल नीड्स नामक पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा था। इस दौरान उन्हें इस बात का एहसास हुआ भारत में कितने लोगों के पास उचित शौचालय भी नहीं है। साथ ही भारतीय शौचालय में बुजुर्गों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। उनकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए सत्यजीत ने “स्क्वाटईज़” का निर्माण किया।

What-is-SquatEase

भारत सरकार से मिला अनुदान

इस प्रकार के निर्माण के लिए उन्हें पूंजी की आवश्यकता थी। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा उन्हें ₹10,00,000 रुपए का अनुदान दिया गया जिसकी सहायता से वह “स्क्वाटईज़” के निर्माण को शुरू करने में सफल हुए। निर्माण के बाद बाजार में इस नए डिजाइन के शौचालय तू लाने से पहले इसका परीक्षण किया जाना अति आवश्यक था। अब उनके सामने सबसे बड़ी समस्या इसका परीक्षण था।

कुंभ मेले में किया गया परीक्षण

कुंभ मेले में एक साथ लाखों लोग इकट्ठा होते हैं अतः वहां शौचालय की भी आवश्यकता पड़ती है। “स्क्वाटईज़” के परीक्षण के लिए कुंभ मेले में 5000 से अधिक शौचालय स्थापित किए गए थे जो सत्यजीत की कंपनी द्वारा प्रदान किए गए। दुनिया भर से यहां आए शरणार्थियों से मिली प्रतिक्रिया के बाद यह परीक्षण सफल हुआ। अब “स्क्वाटईज़” बाजारों में उपलब्ध है। इसका प्रयोग भारतीय शौचालयों में किया जा सकता है।

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