नीरज के एक गोल्ड की चमक के पीछे दब गए झाझरिया के कई गोल्ड
डेस्क: क्या आप बता सकते हैं नाम और शौहरत पाने के लिए एक एथलीट को वास्तव में कितने पदक जितने की आवश्यकता है? यह कोई नहीं बता सकता। कभी-कभी कोई एथलीट एक पदक जीत कर ही विश्वविख्यात हो जाता है। तो कभी एक से अधिक स्वर्ण दिलाने के बाद भी किसी एथलीट को वो पहचान नहीं मिल पाती। टोक्यो ओलिंपिक में भारत को स्वर्ण दिलाने के बाद नीरज चोपड़ा भी बहुत फेमस हो गए। टोक्यो ओलिंपिक में केवल एक स्वर्ण से ही सभी भारतीय उनके फैन हो गए। लेकिन उनके स्वर्ण के चमक में देवेंद्र झाझरिया का नाम कहीं दब कर रह गया।
कौन हैं देवेंद्र झाझरिया?
देवेंद्र झाझरिया भारत के एक प्रतिभाशाली भाला फेंक खिलाड़ी हैं जिन्हें काफी कम लोग जानते हैं। वह पैरा स्पोर्ट्स के खिलाडी हैं जिन्होंने कई बार की ही तरह इस बार भी टोक्यो पैरालंपिक में भारत का नाम रौशन कर दिया। लेकिन फिर भी काफी काम लोग ही उनके बारे में जानते हैं। कई लोगन को तो यह भी नहीं पता कि देवेंद्र झाझरिया ने पैरालंपिक में भारत को दो स्वर्ण और एक रजत पदक दिया है। लेकिन इसके बाद भी वह गुमनाम हैं।
2004 में बनाया रिकॉर्ड
2004 के एथेंस पैरालंपिक में झाझरिया ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए पहली बार ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक खेलों के लिए क्वालीफाई किया। एथेंस पैरालंपिक में, उन्होंने 59.77 मीटर के पुराने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 62.15 मीटर की दूरी के साथ एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। इस थ्रो ने उन्हें स्वर्ण पदक दिलाया और वह उस समय अपने देश के लिए पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले दूसरे खिलाड़ी बन गए। पैरालंपिक में भारत को पहली बार स्वर्ण दिलाने वाले खिलाड़ी मुरलीकांत पेटकर हैं।
12 साल बाद तोड़ा अपना ही रिकॉर्ड
पहला स्वर्ण जितने के 12 साल बाद 2016 में रियो में आयोजित ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक में, उन्होंने पुरुषों की भाला फेंक F46 स्पर्धा में फिर एक बार स्वर्ण पदक जीता। इस दौरान उन्होंने एक बार फिर अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया। उन्होंने अपने ही 2004 के रिकॉर्ड को तोड़कर 63.97 मीटर के थ्रो का नया विश्व-रिकॉर्ड बनाया। इसके अलावा भी उन्होंने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में हिस्सा लिया और गोल्ड भी जीते।
इस बार भी देश को नहीं किया निराश
2004 से 2021 तक देवेंद्र ने लगातार 17 सालों तक सफलता हासिल की है। उन्होंने एशियन से लेकर वर्ल्ड मीट तक देश को निराश नहीं होने दिया। 30 अगस्त 2021 को, झाझरिया ने टोक्यो पैरालिंपिक 2020 में पुरुषों की भाला फेंक F46 स्पर्धा में रजत पदक जीता। इसी स्पर्धा में भारत के ही सुंदर सिंह गुर्जर ने भी कांस्य पदक जीता। टोक्यो पैरालंपिक में 19 वर्षीय अवनि ने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल के फाइनल इवेंट में 149.6 के प्रभावशाली स्कोर के साथ जीत हासिल की। इसी के साथ वह स्वर्ण पदक की दावेदार बन गई।
बचपन में हुए दुर्घटना का शिकार
देवेंद्र झाझरिया का जन्म 1981 में हुआ था और वे राजस्थान के चुरू जिले के रहने वाले हैं। आठ साल की उम्र में उन्होंने पेड़ पर चढ़ते हुए भूल से एक बिजली के तार को छू लिया था। जिसके बाद डॉक्टरों को उनके बाएं हाथ को काटने के लिए मजबूर होना पड़ा। भारतीय रेलवे के पूर्व कर्मचारी देवेंद्र झाझरिया वर्तमान में राजस्थान वन विभाग में कार्यरत हैं। उनकी पत्नी मंजू राष्ट्रीय स्तर की कबड्डी खिलाड़ी रह चुकी हैं। इस दंपति के दो बच्चे भी हैं।
कई सम्मानों से हो चुके हैं सम्मानित
सबसे पहले उन्हें 2004 में एथेंस पैरालंपिक में शानदार प्रदर्शन के बाद “अर्जुन अवार्ड” से सम्मानित किया गया था। साल 2012 में भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें “पद्म श्री” से सम्मानित किया। इस सम्मान से सम्मानित होने वाले वह पहले पैरालंपियन थे। 2014 में FICCI पैरा-स्पोर्ट्सपर्सन ऑफ द ईयर का अवार्ड मिला। साल 2017 वह “मेजर ध्यानचंद खेल रत्न” से सम्मानित किये गए।
इतनी सफलता के बावजूद गुमनाम हैं देवेंद्र
एक तरफ जहां ओलम्पिक में मात्र एक बार गोल्ड लाने पर नीरज के ऊपर बायोपिक तक बनने की चर्चा हो रही है, वहीं देवेंद्र झाझरिया कई बार पैरालंपिक में भारत को गोल्ड दिलाने के बाद भी गुमनाम रह गए हैं। ऐसा लग रहा है कि वे उस सम्मान से वंचित हैं जिसके वह आज हकदार हैं। शायद ऐसा उनके पैरा-एथलीट होने की वजह से है। यह बात कड़वी है लेकिन सच कि हमारे देश में जितनी इज्जत ओलिंपिक में पदक जितने पर मिलती है, उतनी पैरालंपिक में गोल्ड मिलने पर भी नहीं मिलती। इसके पीछे कहीं न कहीं हम ही दोषी हैं।