यात्री की फ्लाइट मिस हो गयी, सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे पर लगाया जुर्माना, देने होंगे इतने रुपए
डेस्क: ऐसा कहने में कोई बुराई नहीं कि भारत में हर सरकारी काम देरी से होती है। जब बात देरी की होती है तो भारतीय रेल का मुकाबला कोई नहीं कर सकता। आमतौर पर ट्रेन के कुछ मिनट लेट होने पर यात्रियों को कोई खास दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता है। लेकिन जब यह देरी कई घंटों की हो जाती है तो इस वजह से कई बार यात्रियों को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
हाल ही में एक ऐसा मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा जिसमें ट्रेन के 4 घंटे लेट होने की वजह से एक व्यक्ति की फ्लाइट छूट गई। दरअसल, शिकायतकर्ता की जम्मू से श्रीनगर की फ्लाइट थी। जम्मू पहुंचने के लिए उन्होंने अजमेर-जम्मू एक्सप्रेस को चुना। लेकिन ट्रेन के अपने तय समय से कई घंटे लेट होने की वजह से शिकायतकर्ता की फ्लाइट छूट गई। बता दें कि उस दिन अजमेर जम्मू एक्सप्रेस 4 घंटे लेट थी।
मामले को रेलवे लेकर पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
ट्रेन के लेट होने की वजह से फ्लाइट छूट जाने की शिकायत पीड़ित यात्री ने नॉर्दन रेलवे से करने की ठानी। जिसके बाद जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम द्वारा उनको मुआवजे के तौर पर कुछ राशि देने का फैसला लिया गया। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी। लेकिन नॉर्दन रेलवे को यह फैसला रास नहीं आया। अतः उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण के इस फैसले को चुनौती देने की ठानी।
यात्री के हक में आया फैसला
इस मामले के सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने के बाद जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने शिकायतकर्ता के हक में फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ट्रेन के लेट हो जाने की वजह से शिकायतकर्ता की फ्लाइट छूट गई थी इस वजह से उसे टैक्सी से श्रीनगर जाना पड़ा। अतः टैक्सी का किराया और हवाई टिकट में खर्च हुए रुपए के साथ मानसिक पीड़ा और मुकदमे में हुए खर्च के लिए मुआवजा देना होगा।
₹30,000 का दिया जाएगा मुआवजा
बता दें कि शिकायतकर्ता ने ₹15,000 टैक्सी से श्रीनगर जाने के लिए खर्च किया था। इसके अलावा फ्लाइट के टिकट के लिए उन्होंने ₹10,000 खर्च किए थे। इन खर्चों के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने ₹5000 मानसिक पीड़ा और मुकदमे में हुए खर्च के लिए मुआवजा के तौर पर शिकायतकर्ता को देने का फैसला सुनाया। कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता को ₹30,000 मुआवजे के तौर पर दिए जाने का फैसला सुनाया। शिकायतकर्ता को यह मुआवजा भारतीय रेलवे देगी।
अपना पक्ष रखने का रेलवे को भी मिला था मौका
भारतीय रेलवे द्वारा दलील दी गई की ट्रेन के देर से चलने को रेलवे की सेवा में कमी के तौर पर नहीं देखना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने भारतीय रेलवे को एक मौका देते हुए कहा कि यदि रेलवे इस बात की सबूत दे सकती है कि ट्रेन की देर होने की वजह नियंत्रण से बाहर थी तो उन्हें मुआवजा नहीं देना होगा। लेकिन भारतीय रेलवे इसे साबित करने में विफल रहा। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रत्येक यात्री का समय कीमती है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया सुझाव
भारतीय रेलवे को सुझाव देते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों की पीठ ने कहा कि यदि सरकारी परिवहन को प्राइवेट कंपनियों से मुकाबला करना है और जीवित रहना है तो उन्हें अपने कार्यशैली पर सुधार करने की आवश्यकता है। इस वजह से किसी भी यात्री को नुकसान नहीं होना चाहिए और यदि किसी यात्री को इस वजह से नुकसान का सामना करना पड़ता है इसकी जवाबदेही किसी को लेनी होगी।