सब्जी विक्रेता की बेटी को नहीं मिला स्कूल में एडमिशन, माँ-बाप के बलिदान से ऐसे बनी बड़ी कंपनी में मैनेजर
![Madhu Priya became manager in a big company due to the sacrifice of her parents](https://akjnews.com/wp-content/uploads/2022/07/Madhu-Priya-became-manager-in-a-big-company-due-to-the-sacrifice-of-her-parents-780x419.jpg)
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डेस्क: कई बार सफलता न मिलने आप लोग तरह तरह के बहाने बनाते हैं। साथ ही वह अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को भी अपने असफलता का कारण बताते हैं। लेकिन तमिलनाडु की मधु प्रिया ने यह साबित कर दिया कि सफलता मौजूदा संसाधनों से नहीं बल्कि मेहनत से मिलती है। अपनी कड़ी मेहनत के दम पर ही मधु अपने परिवार की पहली शिक्षित सदस्य बनीं।
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तमिलनाडु में सब्जी विक्रेताओं की बेटी होने के नाते मधु प्रिया को कम उम्र में ही कई जिम्मेदारियों को उठाना पड़ा। आपको जानकर हैरानी होगी कि मधु प्रिया अपने परिवार में पहली पीढ़ी की शिक्षित महिला हैं, जिनके पास कॉर्पोरेट नौकरी और अंग्रेजी बोलने का कौशल है। अपने सभी अनुभवों के बावजूद आज वह यह नहीं कहती कि उनका जीवन बहुत कठिनाइयों में बिता।
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सब्जी विक्रेता की बेटी होने के कारण नहीं मिला स्कूल में दाखिला
वह अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां को देती हैं। वह कहती हैं, “माँ ने अपना सब कुछ बलिदान कर दिया ताकि मुझे सब कुछ मिल सके।” मधु के माता-पिता का सपना था कि उनकी दोनों बेटियां शहर के सबसे बड़े कॉन्वेंट स्कूल में पढ़े। लेकिन एक सब्जी विक्रेता की बेटी होने के कारण उन्हें स्कूल में दाखिला नहीं मिल सका। मधु कहती हैं, “केवल बड़े लोग ही वहां पढ़ते थे। इनमें अभिनेता, राजनेता एवं खिलाड़ियों के बच्चे शामिल थे।”
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उनकी माता देवकी के दृढ़ संकल्प से आखिरकार दोनों लड़कियों को स्कूल में दाखिला मिल ही गया। मधु के अनुसार उनकी माता शिक्षा में निवेश करने में विश्वास करती थी। उन्होंने भविष्य के लिए कोई पैसा नहीं बचाया। लेकिन उनके पिता उनकी आर्थिक स्थिति के कारण बड़े खर्चों से पहले बार-बार सोचते थे। मधु कहती हैं, ”दुकान से जो भी मुनाफा होता था, वह पूरी तरह से हमारी पढ़ाई पर खर्च किया जाता था।
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सब्जी विक्रेताओं की बेटी की सफलता की कहानी
आज देवकी के लिए गर्व का सबसे बड़ा स्रोत उनकी बेटी को आज अंग्रेजी में बातचीत करते देखना है। परिवार की मातृभाषा तमिल है। लेकिन अपनी बेटियों को अंग्रेजी सीखने के लिए उनकी माँ अंग्रेजी के छोटे-छोटे शब्दों और टूटे-फूटे वाक्यों का प्रयोग अपने दैनिक जीवन में करने लगीं। मधु का कहना है कि उन्हें सिखाते-सिखाते उनकी माँ भी अब अच्छी अंग्रेजी बोलने और समझने लगी हैं।
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मधु कहती हैं, “जब मैं एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में एचआर प्रोफेशनल के तौर पर काम कर रही थी, तब मैं महिला कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों के साथ काफी समय बिताती थी। वे मुझे बताते थे कि किसी भी एचआर कर्मचारी ने कभी भी उनसे बात करने के लिए समय नहीं निकाला, जिससे मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ा। मुझे अभी भी अपने जन्मदिन और महिला दिवस जैसे अवसरों पर इन महिलाओं से मधुर संदेश मिलते हैं। बता दें कि आज मधु एक अंतरराष्ट्रीय आईटी फर्म में एसोसिएट मैनेजर के रूप में काम करती हैं।
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