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दिल्ही आने तक के पैसे नही हैं साहिब, कृपया पुरुस्कार डाक से भिजवा दो! : ‘पद्मश्री’ हलधर नाग

 

डेस्क: 3 जोड़ी कपड़े, एक टूटी हुई रबड़ की चप्पल, एक बिन कमानी का चश्मा और 732 रुपये की जमा पूंजी का मालिक हलधर नाग, जिसके नाम के आगे कभी श्री नही लगाया गया, उन्हें भारत सरकार ने साल 2016 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया।

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ज़ुबानी याद हैं सारी रचनाएं

उड़ीसा के रहने वाले हलधर नाग कोसली भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी ख़ास बात यह है कि उन्होंने जो भी कविताएं और 20 महाकाव्य अभी तक लिखे हैं, वे उन्हें ज़ुबानी याद हैं। अब संभलपुर विश्वविद्यालय में उनके लेखन के एक संकलन ‘हलधर ग्रन्थावली-2’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। सादा लिबास, सफेद धोती, गमछा और बनियान पहने, नाग नंगे पैर ही रहते हैं।

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गरीबी में बिताया बचपन

उड़‍िया लोक-कवि हलधर नाग के बारे में जब आप जानेंगे तो प्रेरणा से ओतप्रोत हो जायेंगे। सादा जीवन और उच्च विचार के अवतार, ‘पद्मश्री’ हलधर नाग का जन्म 1950 में बरगढ़ जिले के एक दलित परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना पूरा बचपन गरीबी में ही बिता दिया।

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तीसरी कक्षा में ही छोड़ दी पढ़ाई

10 साल की छोटी उम्र में अपने माता-पिता को खो देने के बाद उन्‍होंने तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी थी। अनाथ की जिंदगी जीते हुये ढाबा में जूठे बर्तन साफ कर उन्होंने कई साल गुजारे। बाद में एक स्कूल में रसोई की देखरेख का काम मिला।

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1000 रुपये कर्ज लेकर खोली दुकान

कुछ वर्षों बाद बैंक से 1000 रुपया कर्ज लेकर उन्होंने उसी स्कूल के सामने पेन-पेंसिल आदि की छोटी सी दुकान खोल ली। यह तो थी उनकी अर्थ व्यवस्था। अब आते हैं उनकी साहित्यिक विशेषता पर।

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‘काव्यांजलि’ के लिए हैं प्रसिद्ध

1990 में, उन्होंने अपनी पहली कविता ‘धोडो बरगच’ (द ओल्ड बरगद ट्री) लिखी। हलधर ने 1995 के आसपास स्थानीय उडिया भाषा में ”राम-शबरी ” जैसे कुछ धार्मिक प्रसंगों पर लिख-लिखकर लोगों को सुनाना शुरू किया। उन्होंने अपनी कई कविताएँ एक स्थानीय पत्रिका के साथ साझा कीं और उनकी रचनाएँ जल्द ही प्रकाशित हुईं। वह अपने काम ‘काव्यांजलि’ के लिए प्रसिद्ध हैं।

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2016 में मिला ‘पद्मश्री’

भावनाओं से पूर्ण कवितायें लिख लोगों के बीच प्रस्तुत करते-करते वो इतने लोकप्रिय हो गये कि साल 2016 में राष्ट्रपति ने उन्हें साहित्य के लिये पद्मश्री प्रदान किया। नाग की सादगी और साधारण व्यक्तित्व का अंदाजा तब लगाया जा सकता है जब उन्हें ‘पद्मश्री’ के लिए उनके नामांकन के बारे में फोन आया। “साहब! मेरे पास दिल्ली आने के लिए पैसे नहीं हैं, कृपया पुरस्कार (पद्मश्री) डाक से भेजें।”

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उनके साहित्य पर 5 शोधार्थी कर रहे हैं PHd

वह अपने पद्मश्री भत्ते से 10,000 रुपये एक स्थानीय अनाथालय को दान कर देते हैं। इतना ही नहीं 5 शोधार्थी अब उनके साहित्य पर PHd कर रहे हैं जबकि स्वयं हलधर तीसरी कक्षा तक पढ़े हैं।

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